बड़ा एहसान हम फ़रमा रहे हैं | |
कि उन के ख़त उन्हें लौटा रहे हैं | |
नहीं तर्क-ए-मोहब्बत पर वो राज़ी | |
क़यामत है कि हम समझा रहे हैं | |
यक़ीं का रास्ता तय करने वाले | |
बहुत तेज़ी से वापस आ रहे हैं | |
ये मत भूलो कि ये लम्हात हम को | |
बिछड़ने के लिए मिलवा रहे हैं | |
तअ'ज्जुब है कि इश्क़-ओ-आशिक़ी से | |
अभी कुछ लोग धोका खा रहे हैं | |
तुम्हें चाहेंगे जब छिन जाओगी तुम | |
अभी हम तुम को अर्ज़ां पा रहे हैं | |
किसी सूरत उन्हें नफ़रत हो हम से | |
हम अपने ऐब ख़ुद गिनवा रहे हैं | |
वो पागल मस्त है अपनी वफ़ा में | |
मिरी आँखों में आँसू आ रहे हैं | |
दलीलों से उसे क़ाइल किया था | |
दलीलें दे के अब पछता रहे हैं | |
तिरी बाँहों से हिजरत करने वाले | |
नए माहौल में घबरा रहे हैं | |
ये जज़्ब-ए-इश्क़ है या जज़्बा-ए-रहम | |
तिरे आँसू मुझे रुलवा रहे हैं | |
अजब कुछ रब्त है तुम से कि तुम को | |
हम अपना जान कर ठुकरा रहे हैं | |
वफ़ा की यादगारें तक न होंगी | |
मिरी जाँ बस कोई दिन जा रहे हैं | |
0 Comments