तुम बिना मैं - कुमार विश्वास

 

तुम बिना मैं स्वर्ग का भी सार लेकर क्या करूँ
शर्त का अनुशासनों का प्यार लेकर क्या करूँ

जब नहीं थे तुम तो जाने मैं कहाँ खोया हुआ था
स्वयं से अनजान, कैसी नींद में सोया हुआ था
नींद से मुझको जगाकर तुमने तब अपना बनाया
दो दिलों की धड़कनों ने एक सुर में गीत गाया
जो अमर उस राग की मधु-लहरियों में खो गई थी
फिर वही अविरल नयन जलधार लेकर क्या करूँ
शर्त का अनुशासनों का प्यार लेकर क्या करूँ
तुम बिना मैं स्वर्ग का भी सार लेकर क्या करूँ

तालियों का शोर मत दो, ये सभी नग़मात ले लो
रोशनी में झिलमिलाती, मद भरी हर रात ले लो
छीन लो, मेरे अधर से रूप के दोनों किनारे
पर मुझे फिर, नेह से छलें नयन पावन तुम्हारे
मैं उन्हीं को दूर से बस देखकर गाता रहूंगा
अन्यथा स्वर्ग का अमर-उपहार लेकर क्या करूँ
शर्त का अनुशासनों का प्यार लेकर क्या करूँ
तुम बिना मैं स्वर्ग का भी सार लेकर क्या करूँ
शर्त का अनुशासनों का प्यार लेकर क्या करूँ


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