तुम बिना मैं स्वर्ग का भी सार लेकर क्या करूँ |
शर्त का अनुशासनों का प्यार लेकर क्या करूँ |
जब नहीं थे तुम तो जाने मैं कहाँ खोया हुआ था |
स्वयं से अनजान, कैसी नींद में सोया हुआ था |
नींद से मुझको जगाकर तुमने तब अपना बनाया |
दो दिलों की धड़कनों ने एक सुर में गीत गाया |
जो अमर उस राग की मधु-लहरियों में खो गई थी |
फिर वही अविरल नयन जलधार लेकर क्या करूँ |
शर्त का अनुशासनों का प्यार लेकर क्या करूँ |
तुम बिना मैं स्वर्ग का भी सार लेकर क्या करूँ |
तालियों का शोर मत दो, ये सभी नग़मात ले लो |
रोशनी में झिलमिलाती, मद भरी हर रात ले लो |
छीन लो, मेरे अधर से रूप के दोनों किनारे |
पर मुझे फिर, नेह से छलें नयन पावन तुम्हारे |
मैं उन्हीं को दूर से बस देखकर गाता रहूंगा |
अन्यथा स्वर्ग का अमर-उपहार लेकर क्या करूँ |
शर्त का अनुशासनों का प्यार लेकर क्या करूँ |
तुम बिना मैं स्वर्ग का भी सार लेकर क्या करूँ |
शर्त का अनुशासनों का प्यार लेकर क्या करूँ |
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