राई से दिन बीत रहे हैं - कुमार विश्वास

 

तुम आयीं चुप खोल साँकलें
मन के मुँदे किवार से
राई से दिन बीत रहे हैं
जो थे कभी पहार से

तुमने धरा, धरा पर ज्यों ही पाँव
समर्पण जाग गया
बिंदिया के सूरज से मन पर घिरा
कुहासा भाग गया
इन अधरों की कलियों से जो फूटा
जग में फैल गया
इसी राग के अनुगामी होकर
मेरा अनुराग गया

तुम आई चुप फूल बटोरे
मन के हरसिंगार के
राई से दिन बीत रहे हैं
जो थे कभी पहार से

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