तुम आयीं चुप खोल साँकलें |
मन के मुँदे किवार से |
राई से दिन बीत रहे हैं |
जो थे कभी पहार से |
तुमने धरा, धरा पर ज्यों ही पाँव |
समर्पण जाग गया |
बिंदिया के सूरज से मन पर घिरा |
कुहासा भाग गया |
इन अधरों की कलियों से जो फूटा |
जग में फैल गया |
इसी राग के अनुगामी होकर |
मेरा अनुराग गया |
तुम आई चुप फूल बटोरे |
मन के हरसिंगार के |
राई से दिन बीत रहे हैं |
जो थे कभी पहार से |
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