हर सदा पैग़ाम देती फिर रही दर-दर |
चुप्पियों से भी बड़ा है चुप्पियों का डर |
रोज़ मौसम की शरारत झेलता कब तक |
मैंने खुद में रच लिए कुछ खुशनुमा मंज़र |
वक़्त ने मुझ से कहा "कुछ चाहिए तो कह" |
मैं बोला शुक्रिया मुझको मुआफ़ कर |
मैं भी उस मुश्कि़ल से गुज़रा हूँ जो तुझ पर है |
राह निकलेगी कोई तू सामना तो कर |
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