हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें |
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें |
जिस पल हल्दी लेपी होगी तन पर माँ ने |
जिस पल सखियों ने सौंपी होंगीं सौगातें |
ढोलक की थापों में, घुँघरू की रुनझुन में |
घुल कर फैली होंगीं घर में प्यारी बातें |
उस पल मीठी-सी धुन |
घर के आँगन में सुन |
रोये मन-चैसर पर हार कर तुम्हें |
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें |
कल तक जो हमको-तुमको मिलवा देती थीं |
उन सखियों के प्रश्नों ने टोका तो होगा |
साजन की अंजुरि पर, अंजुरि काँपी होगी |
मेरी सुधियों ने रस्ता रोका तो होगा |
उस पल सोचा मन में |
आगे अब जीवन में |
जी लेंगे हँसकर, बिसार कर तुम्हें |
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें |
कल तक मेरे जिन गीतों को तुम अपना कहती थीं |
अख़बारों में पढ़कर कैसा लगता होगा |
सावन को रातों में, साजन की बाँहों में |
तन तो सोता होगा पर मन जगता होगा |
उस पल के जीने में |
आँसू पी लेने में |
मरते हैं, मन ही मन, मार कर तुम्हें |
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें |
हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें |
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें |
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