तन मन महका जीवन महका |
महक उठे घर-द्वारे |
जब- जब सजना |
मोरे अंगना, आये सांझ सकारे |
खिली रूप की धुप |
चटक गयीं कलियाँ, धरती डोली |
मस्त पवन से लिपट के पुरवा, हौले-हौले बोली |
छीनके मेरी लाज की चुनरी, टाँके नए सितारे |
जब- जब सजना |
मोरे अंगना, आये सांझ सकारे |
सजना के अंगना तक पहुंचे |
बातें जब कंगना की |
धरती तरसे, बादल बरसे, मिटे प्यास मधुबन की |
होठों की चोटों से जागे, तन के सुप्त नगारे |
जब- जब सजना |
मोरे अंगना, आये सांझ सकारे |
नदिया का सागर से मिलने |
धीरे-धीरे बढ़ना |
पर्वत के आखरघाटी, वाली आँखों से पढ़ना |
सागर सी बाहों मे आकर, टूटे सभी किनारे |
जब- जब सजना |
मोरे अंगना, आये सांझ सकारे |
0 Comments