औक़ात नहीं मेरी, कि पिता को पिता लिखुँ,
काँटो भरा बनाकर मुक्कदर अपना, फ़ूलों सी लिखी किस्मत मेरी,
अब तुम ही बोलो, उस शख्स को मैं क्या लिखुँ,
मेरे तो ज़हन में हैं, उनको मैं अपना खुदा लिखुँ,
बरगद की गहरी छांव जैसे, जिसने दिये हो,
घने साये हमे, जिंदगी की इस चुभती धूप में,
इस धरा पर जो मिला हो हमे, ईश्वर के रूप में,
दिल कहे, बन मैं उसके चरणों की धूल बिकुं,
अब तुम ही बोलो, उस शख्स को मैं क्या लिखुँ,
मेरे तो ज़हन में हैं, उनको मैं अपना खुदा लिखुँ,
मेरे संग खेले वो, घोड़ा बनकर भी जिसने प्यार दिया,
खिलौनें दिये, मित्र बने, ना जाने क्या क्या उपहार दिया,
संकट में पतवार बनें, आश्रय स्थल जिसने यार दिया,
दिल कहे, बस एक पल के लिये, मैं उनसा दिखूँ,
अब तुम ही बोलो, उस शख्स को मैं क्या लिखुँ,
मेरे तो ज़हन में हैं, उनको मैं अपना खुदा लिखुँ,
अँधेरों में जो बना दीपक मेरा, सही रास्ता दिखलाया,
न डरना तू कठिनाइयों से, जिसने मुझको सिखलाया,
भीड़ लगी हो चाहे गमो की, पर हरदम जो मुस्कुराया,
दिल कहे, मेरे ब्रह्मा का, क्यों न मैं बन कमल बिकुं,
अब तुम ही बोलो, उस शख्स को मैं क्या लिखुँ,
मेरे तो ज़हन में हैं, उनको मैं अपना खुदा लिखुँ,
हिम्मत और विश्वास बने, उम्मीद और आस बने,
अपने दम पर तूफानों से लड़ना, ये भी बतलाया,
किसी के आगे तुम न झुकना, ये भी तो सीखलाया,
दिल कहे, उपनिषदों सी उनकी हर सीख लिखुँ,
अब तुम ही बोलो, उस शख्स को मैं क्या लिखुँ,
मेरे तो ज़हन में हैं, उनको मैं अपना खुदा लिखुँ,
आंसू छिपाना देखा, दर्द को दबाना भी देखा,
अंगारों सी छांव देखी, कांटो पर चलकर मुस्कुराना भी देखा,
यह जमाना वह जमाना, भी सीख ले आपसे,
दिल कहे, बिन जिनके अधूरी अपनी हर पहचान लिखुँ,
अब तुम ही बोलो, उस शख्स को मैं क्या लिखुँ,
मेरे तो ज़हन में हैं, उनको मैं अपना खुदा लिखुँ,
पिता है कल्पतरू देखा, पिता है पारिजात भी देखा,
मेरी बूंद की तृष्णा पे, कैसे बना वो बरसात भी देखा,
अधूरी वो जन्नत भी जिसके आगे होती है,
जिसके बिन न पूरी मेरी कोई मन्नत होती है,
सही लिखुँ मैं जिसको हरदम, अपनी हरदम ख़ता लिखुँ,
अब तुम ही बोलो, उस शख्स को मैं क्या लिखुँ,
मेरे तो ज़हन में हैं, उनको मैं अपना खुदा लिखुँ,
माँ का आँचल तो हमे, जन्म के पहले से जानता हैं,
पर हम है अंस बस पिता का, ये ज़माना मानता हैं,
हमारे अनकहे दुखों को भी, हरपल जो पहचानता हैं,
हमको ही बस जो अपनी, सच्ची दौलत मानता हैं,
बिन जिनके व्यर्थ अपनी मैं हर उड़ान लिखुँ,
अब तुम ही बोलो, उस शख्स को मैं क्या लिखुँ,
मेरे तो ज़हन में हैं, उनको मैं अपना खुदा लिखुँ,
📝✍️ HEMRAJ
1 Comments
😘😘😘😍😍😍
ReplyDelete